जिन्होंने देवभूमि को सेवा भूमि मानने की बजाए अपनी ऐशगाह बना लिया था ऐसे सभी अफसरों के उलटे दिन शुरू हो चुके हैं और सूत्रों की मानें तो इन पर कार्रवाई की तलवार लटक चुकी है

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किसी भी प्रदेश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए सरकार और अफसरशाही के बीच समन्वय होना एक बुनियादी आवश्यकता है। ये उत्तराखंड का सौभाग्य रहा कि प्रदेश गठन के बाद से राज्य को कई ऐसे अधिकारी मिले जो दिन-रात देवभूमि कि सेवा में समर्पित रहे। लेकिन जैसा कि अक्सर होता ही है, चिराग तले अंधेरा… वैसा ही उत्तराखंड में भी हुआ। ईमानदार और कर्मठ अधिकारियों के साथ साथ प्रदेश के खाते में कुछ ऐसे अधिकारी भी आए जिन्होंने भ्रष्टाचार के मामले में कई कीर्तिमान बनाए। राजनीतिक संरक्षण प्राप्त इन अधिकारियों के लिए जन कल्याण से अधिक आवश्यक अपने आकाओं का कल्याण था।

ऐसे अधिकारी उस दीमक की तरह थे जो उत्तराखंड जैसे युवा राज्य की आशाओं और आकांक्षाओं को भीतर ही भीतर खोखला कर रहे थे। ऐसे चुनिंदा अफसरों के कारण राज्य की पूरी ब्यरोक्रेसी बदनाम हो रही थी। उत्तराखंड को लेकर ये मत बन गया था कि सूबे में अफसरशाही हावी है और जो भी राजनेता इसको संतुलित करने का प्रयास करता है उसकी विदाई हो जाती है।
उत्तराखंड का राजनीतिक इतिहास देखें तो यहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड रहा है। राजनीतिक पंडितों की माने तो सत्ता परिवर्तन के इस लगभग तय हो चुके ट्रेंड ने ही अफसरों को हावी होने के अवसर दिया।
नेताओं के साथ मिल कर इन अफसरों ने एक ऐसा नेक्सस बना लिया था जिस पर वार करने से हर नेता कतराता था।

मुख्यमंत्री के रूप में पुष्कर सिंह धामी ने जैसे अन्य धारणाओं को ध्वस्त किया ठीक वैसे ही इस पर भी उन्होंने प्रहार किया। धामी इसके लिए विशेष रूप से बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने पहले दिन से ही लचर अफसरों को कसने का काम शुरू किया। अधिकतर भ्रष्ट अधिकारी ये मान कर बैठे थे कि अब सत्ता में आने की बारी कांग्रेस की है और पुष्कर सिंह धामी राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं। खुद कांग्रेस के भीतर मौजूद हमारे सूत्रों ने ये बताया कि कई अधिकारियों ने चुनाव के दौरान कांग्रेस का साथ दिया और पर्दे के पीछे से कांग्रेस कि जीत के लिए तमाम संसाधन उपलब्ध करवाए। कांग्रेस और उसके चहेते अधिकारियों की इस कोटरी का केवल एक ही उद्देश्य था भाजपा और पुष्कर सिंह धामी की हार।

लेकिन धामी तो आखिर धामी हैं। उनको हल्के में लेने वाले ये प्रशासनिक अधिकारी और विपक्ष में बैठे उनके आका धामी की राजनीतिक परिपक्वता को भांप ही नहीं पाए। साल 2021 में, एकदम अप्रत्याशित तरीके से पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड की सत्ता सौंपी गई , उनके सामने तमाम बड़ी चुनौतियां थीं। अपने छोटे से कार्यकाल में धामी ने ना केवल हताश हो चुके भाजपा कैडर में नई जान फूंकी बल्कि पार्टी को दोबारा सत्ता में लाकर इतिहास रच दिया। धामी की इस धमाकेदार जीत को देख विपक्ष और उसके चहेते प्रशासनिक अधिकारियों की तो मानो काटो तो खून नहीं वाली बात हो गई। उनकी तमाम रणनीतियां धरी की धरी रह गई और पुष्कर धामी अजेय योद्धा बन कर सामने आए।

लेकिन इस योद्धा को खटीमा की हार का घाव लगा था। निराशा के गर्त में पहुंच चुके विपक्ष और उसके कृपापात्र कपटी अधिकारियों ने इस घाव पर पूरी ताकत से नमक रगड़, धामी की हिम्मत को तोड़ने का प्रयास किया। ऐसे अधिकारी मान चुके थे कि भाजपा भले ही सत्ता में आ गई हो लेकिन धामी तो हार ही गए हैं और अब इन्हें फिर से मनमानी करने से कोई रोक नहीं पाएगा। लेकिन धामी अपने कामकाज से जनता के दिलों को जीत चुके थे और राज्य में एक नए जन नायक का उदय हो चुका था। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने भी जन भावनाओं का आदर करते हुए पुन: धामी के नाम पर मुहर लगाई और उत्तराखंड का विकास करने को निर्देशित किया।

और यहां से शुरू हुआ कुचक्रों का एक नया अध्याय… हर स्तर से मुंह की खा चुके इन भ्रष्ट अधिकारियों ने सीएम पुष्कर धामी की छवि को धूमिल करने और उनके खिलाफ दुष्प्रचार करने के नए-नए पैंतरे आजमाने शुरू कर दिए। ये अधिकारी अपने रसूख के दम पर आए दिन अख़बारों में सरकार से जुड़ी गोपनीय जानकारियां लीक करने लगे ताकि जनता के बीच धामी सरकार के खिलाफ असंतोष पनपे। लेकिन पुष्कर सिंह धामी अटल इरादों वाले नेता हैं। उन्होंने अपने खिलाफ रचे जा रहे इन षड्यंत्रों से लड़ने के लिए सच्चाई और ईमानदारी के मंत्रों को अपनाया।

UKSSSC मामले में उन्होंने जिस आक्रामकता के साथ दोषियों पर कार्रवाई की इसे देख कांग्रेस की गोद में बैठ कर पल रहे अधिकारियों को सांप सूंघ गया।

भ्रष्टाचार में संलिप्त रहा प्रत्येक अधिकारी अब सीएम धामी की रडार पर हैं और उत्तराखंड में वो दिन अब लद चुके हैं जब भ्रष्टाचारी सत्ता के साथ अनैतिक गठजोड़ कर खुद को बचा ले जाते थे। ये जगजाहिर है कि सीएम धामी स्वयं भी उत्तराखंड के सर्वांगीण विकास हेतु दृढ़ संकल्पित हैं और प्रदेश को उत्कृष्ट बनाने में योगदान देने के लिए तैयार हर अधिकारी का वो सम्मान करते हैं। स्वयं अधिकारी ये मानते हैं कि राज्य के प्रति सत्यनिष्ठा के साथ काम करने वालों को जितना प्रोत्साहन पुष्कर सिंह धामी दे रहे हैं उतना पहले कभी नहीं मिला। अनेकों ऐसे अधिकारी हैं जिन्होंने पूर्ण ईमानदारी से प्रदेश को आगे बढ़ाने के प्रयास किये लेकिन उनको हमेशा हाशिये पर रखा गया। लेकिन अब प्रदेश की परिपाटी बदल चुकी है और कर्मठता सम्मान पा रही है। वहीं दूसरी तरफ जिन्होंने देवभूमि को सेवा भूमि मानने की बजाए अपनी ऐशगाह बना लिया था ऐसे सभी अफसरों के उलटे दिन शुरू हो चुके हैं और सूत्रों की मानें तो इन पर कार्रवाई की तलवार लटक चुकी है। प्रदेश की जनता, ऐसे अधिकारियों से पहले ही त्रस्त है और इन्हें कसने की जो कार्रवाई मुख्यमंत्री धामी कर रहे हैं उस पर पूरी तरह से अपने नेता के साथ है।

देखना है अब आगे क्या होता है।
वैसे आगे जो भी हो पर आम उत्तराखंडी अधिकारियों की पेशानी में आए बल को देखकर बहुत प्रसन्न है क्योंकि इन अधिकारियों ने अपने को असली राजा मानकर जो अत्याचार जनता पर किए हैं उनका पहली बार कोई हिसाब मांग रहा है।