जानिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इनके लिए क्‍या कहा ओर कैसे गढ़वाली सीज फायर’ कह अमर हो गए वीर चंद्र सिंह गढ़वाली

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जानिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इनके लिए क्‍या कहा ओर कैसे गढ़वाली सीज फायर’ कह अमर हो गए वीर चंद्र सिंह गढ़वाली

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि गढ़वाली जैसे चार आदमी और होते तो देश कब का आजाद हो चुका होता।

23 अप्रैल 1930 का दिन था, इस दिन पेशावर में विशाल जुलूस निकाला गया था। इस जुलूस में बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। आजादी की मांग कर रहे हजारों लोगों के नारों से आसमान गूंज उठा था । दूसरी तरफ अंग्रेजों का भी खून खौल रहा था। इस बीच अंग्रेजों ने 2/18 रॉयल गढ़वाल राइफल्स को आदेश दिया कि प्रदर्शनकारियों पर हर हाल में नियंत्रण किया जाए। 2/18 रॉयल गढ़वाल राइफल्स की एक टुकड़ी काबुली फाटक के पास तैनात की गई। आंदोलन करने वाों के पास हथियार नहीं थे। अंग्रेज कंमाडर ने जैसे ही आदेश दिया तो सत्याग्रहियों को घेर लिया गया। गढ़वाल राइफल के सैनिकों को जुलूस को ति​तर बितर करने के लिये कहा गया। लेकिन आंदोलनकारियों के आगे अंग्रेज कमांडर का धैर्य जवाब दे गया। अंग्रेज कमांडर ने कहा “”गढ़वालीज ओपन फायर””। यहां से उदय हुआ वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का । वो कमांडर के पास में खड़े थे। वो कड़कती आवाज में बोले “”गढ़वाली सीज फायर””। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की हुंकार से सभी राइफलें नीचे हो गयी। अंग्रेज कमांडर बौखला उठा। उस कमांडर ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक पहाड़ी गर्जना के आगे उसका आदेश हवा हो जाएगा। दरअसल वीर चंद्र सिंह गढ़वाली ने सैनिकों को पहले ही इस बारे में बता दिया था। उन्होंने कहा था कि कुछ भी हो जाए पर निहत्थों पर हथियार नहीं उठाएंगे

 

 

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली : एक परिचय

25 दिसंबर 1891 को जलौथ सिंह भंडारी के यहां जन्मे चंद्र सिंह ने अपनी मेहनत से पढ़ना-लिखना सीखा। तीन सितंबर 1914 को वे सेना में भर्ती हुए व एक अगस्त 1915 को उन्हें सैनिकों के साथ अंग्रेजों ने फ्रांस भेज दिया। एक फरवरी 1916 को वे वापस लैंसडौन आ गए। इसके बाद 1917 में उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों की ओर से मेसोपोटामिया युद्ध व 1918 में बगदाद की लड़ाई लड़ी। प्रथम विश्व युद्ध के बाद अंग्रेजों ने सैनिकों को निकालना शुरू कर दिया। साथ ही कई के ओहदे भी कम करने शुरू कर दिए। चंद्र सिंह भी इनमें से एक थे व उन्हें हवलदार से सैनिक बना दिया।चंद्र सिंह ने सेना छोड़ने का मन बना लिया। लेकिन, अधिकारियों के मनाने पर उन्होंने अपना निर्णय वापस ले लिया। सेना से छुट्टी के दौरान वे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के संपर्क में आए।

1920 में चंद्र सिंह को पुन: तरक्की मिली व वे बटालियन के साथ बजीरिस्तान चले गए। वापस आने पर उन्हे खैबर दर्रा भेज दिया गया। साथ ही उन्हें हवलदार मेजर की पदवी भी मिल गई। यह वह दौर था जब पेशावर में आजादी की जंग चल रही थी। अंग्रेजों ने चंद्र सिंह को उनकी बटालियन के साथ पेशावर भेज दिया और इस आंदोलन को कुचलने के निर्देश दिए। 23 अप्रैल 1930 को आंदोलनरत जनता पर फायरिंग का हुक्म दिया गया, तो चंद्र सिंह ने ‘गढ़वाली सीज फायर’ कहते हुए निहत्थों पर फायर करने के मना कर दिया। आज्ञा न मानने पर अंग्रेजों ने चंद्र सिंह व उनके साथियों पर मुकदमा चलाया। उन्हें सजा हुई व उनकी संपत्ति भी जब्त कर ली गई। अलग-अलग जेलों में रहने के बाद 26 सितंबर 1941 को वे जेल से रिहा हुए। इसके बाद वे महात्मा गांधी से जुड़ गए व भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।